Nadi | Kedarnath Singh
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नदी | केदारनाथ सिंह
अगर धीरे चलो
वह तुम्हें छू लेगी
दौड़ो तो छूट जाएगी नदी
अगर ले लो साथ
तो बीहड़ रास्तों में भी
वह चलती चली जाएगी
तुम्हारी उँगली पकड़कर
अगर छोड़ दो
तो वहीं अँधेरे में
करोड़ों तारों की आँख बचाकर
वह चुपके से रच लेगी
एक समूची दुनिया
एक छोटे-से
घोंघे में
सच्चाई यह है
कि तुम कहीं भी रहो
तुम्हें वर्ष के सबसे कठिन दिनों में भी
प्यार करती है एक नदी
नदी जो इस समय नहीं है हमारे आसपास
पर होगी ज़रूर कहीं-न-कहीं
किसी चटाई
या फूलदान के नीचे
चुपचाप बहती हुई
कभी सुनना
जब सारा शहर सो जाए
तो किवाड़ों पर कान लगा
धीरे-धीरे सुनना
कहीं आसपास
एक मादा घड़ियाल की कराह की तरह
सुनाई देगी नदी!
632 قسمت