In the podcast LafzByGarima Garima Mishra brings random, free-flowing, scattered thoughts translated into Hindi poetry. #hindipoetry #poem #hindi #writing #poetry #writingcommunity #words
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This is my first podcast, please have fun listening and give feedback :)
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*कहानीनामा( Hindi stories), *स्वकथा(Autobiography) *कवितानामा(Hindi poetry) ,*शायरीनामा(Urdu poetry) ★"The Great" Filmi show (based on Hindi film personalities) मशहूर कलमकारों द्वारा लिखी गयी कहानी, कविता,शायरी का वाचन व संरक्षण ★फिल्मकारों की जीवनगाथा ★स्वास्थ्य संजीवनी
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This podcast presents Hindi poetry, Ghazals, songs, and Bhajans written by me. इस पॉडकास्ट के माध्यम से मैं स्वरचित कवितायेँ, ग़ज़ल, गीत, भजन इत्यादि प्रस्तुत कर रहा हूँ Awards StoryMirror - Narrator of the year 2022, Author of the month (seven times during 2021-22) Kalam Ke Jadugar - Three Times Poet of the Month. Sometimes I also collaborate with other musicians & singers to bring fresh content to my listeners. Always looking for fresh voices. Write to me at HindiPoemsByVivek@gmail.com #Hind ...
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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"sham e shayari" is a captivating podcast that takes you on a poetic journey through the rich and expressive world of Hindi literature. With each episode, Fanindra Bhardwaj, a talented poet and voice artist, skillfully weaves together words and emotions to create a truly immersive experience. In this podcast, you'll encounter a wide range of themes, from love and heartbreak to nature and spirituality. Fanindra's poetry beautifully captures the essence of these emotions, allowing listeners to ...
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हम अक्सर रोज की जिंदगी में सुकून भरे और दिल को तरोताजा रखने वाले पल ढूंढते हैं. शायरी सुकून आपको ऐसे ही पलों की बेहतरीन श्रृंखला से रूबरू करवाता है. हमारी shayarisukun.com वेबसाइट को विजिट करते ही आपकी इस सुकून की तलाश पूरी हो जायेगी. यह एक बेहतरीन और नायाब उर्दू-हिंदी शायरियो (Best Hindi Urdu Poetry Shayari) का संग्रह है. यहाँ आपको ऐसी शायरियां 🎙️ मिलेगी, जो और कही नहीं मिल पायेंगी. हम पूरी दिलो दिमाग से कोशिश करते हैं कि आपको एक से बढ़कर एक शायरियों से नवाजे गए खुशनुमा माहौल का अनुभव करा स ...
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This is about poems penned down by me on different emotions.
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An hindi poetry about night of loneliness .
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Listen to latest work of poetry by me.
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यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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A sample of a Hindi poetry in my voice
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Poetry ....Hindi , English and hinglish.... Follow me on Instagram @poetess_swan
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All type of hindi Poetry, Comedy, Tech, Movies, and others information
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Poetry, nazm, sher, ghazal, Hindi shayari
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Puliyabaazi Hindi Podcast पुलियाबाज़ी हिन्दी पॉडकास्ट
Policy, Politics, Tech, Culture, and more...
This Hindi Podcast brings to you in-depth conversations on politics, public policy, technology, philosophy and pretty much everything that is interesting. Presented by tech entrepreneur Saurabh Chandra, public policy researcher Pranay Kotasthane, and writer-cartoonist Khyati Pathak, the show features conversations with experts in a casual yet thoughtful manner. जब महफ़िल ख़त्म होते-होते दरवाज़े के बाहर, एक पुलिया के ऊपर, हम दुनिया भर की जटिल समस्याओं को हल करने में लग जाते हैं, तो हो जाती है ...
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Hindi poetry
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Romance simplified in Hindi , love Poetry
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साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।
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Hindi Audio Story / Poetry (हिन्दी कहानी / कविता का संग्रह) - www.anishjha.com
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तुलसीदास जी का जन्म, आज से लग-भग 490 बरस पहले, 1532 ईसवी में उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ और उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल काशी में गुज़ारे। पैदाइश के कुछ वक़्त बाद ही तुलसीदास महाराज की वालिदा का देहांत हो गया, एक अशुभ नक्षत्र में पैदा होने की वजह से उनके पिता उन्हें अशुभ समझने लगे, तुलसीदास जी के जीवन में सैकड़ों परेशानियाँ आईं लेकिन हर परेशानी का रास्ता प्रभु श्री राम की भक्ति पर आकर खत्म हुआ। राम भक्ति की छाँव तले ही तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस और हनुमान चालीसा जैसी नायाब रचनाओं को ...
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Hello Poetry lovers, Here I will Publish classic Hindi poems to enrich your soul. They will take your emotions from love, sadness to the next level. Expect poetry every 3 days. नमस्कार दोस्तों , आपका पोएट्री विथ सिड में स्वागत है. यहाँ पे कविताये सुनेंगे उन कवियों की जिन्हे हम भूलते जा रहे है. Cover art photo provided by Tom Barrett on Unsplash: https://unsplash.com/@wistomsin
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By profession I'm a journalist. Interested in Politics, Cinema and Literature
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डेटा द्वारा भारत को कैसे समझें? Understanding India through Data ft. Rukmini S
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Welcome to another edition of Puliyabaazi! In today’s episode, we dive into the world of data journalism with noted data journalist Rukmini S. She is the founder of Data for India, a public platform aimed at uncovering new insights about India through data. In this conversation, we discuss the current landscape of data journalism in India. Has the …
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माँ की ज़िन्दगी | सुमन केशरी चाँद को निहारती कहा करती थी माँ वे भी क्या दिन थे जब चाँदनी के उजास में जाने तो कितनी बार सीए थे मैंने तुम्हारे पिताजी का कुर्ते काढ़े थे रूमाल अपनी सास-जिठानी की नज़रें बचा के अपने गालों की लाली छिपाती वे झट हाज़िर कर देती सूई-धागा और धागा पिरोने की बाज़ी लगाती हरदम हमारी जीत की कामना करती माँ ऐसे पलों में खुद बच्ची बन …
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मुझे प्रेम चाहिए | नीलेश रघुवंशी मुझे प्रेम चाहिए घनघोर बारिश-सा । कड़कती धूप में घनी छाँव-सा ठिठुरती ठंड में अलाव-सा प्रेम चाहिए मुझे। उग आये पौधों और लबालब नदियों-सा दूर तक पैली दूब उस पर छाई ओस की बुँदों सा । काले बादलों में छिपा चाँद सूरज की पहली किरण-सा प्रेम चाहिए । खिला-खिला लाल गुलाब-सा कुनमुनाती हँसी-सा अँधेरे में टिमटिमाती रोशनी-सा प्रेम …
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स्त्री | सुशीला टाकभौरे एक स्त्री जब भी कोई कोशिश करती है लिखने की बोलने की समझने की सदा भयभीत-सी रहती है मानो पहरेदारी करता हुआ कोई सिर पर सवार हो पहरेदार जैसे एक मज़दूर औरत के लिए ठेेकेदार या खरीदी संपत्ति के लिए चौकीदार वह सोचती है लिखते समय कलम को झुकाकर बोलते समय बात को संभाल ले और समझने के लिए सबके दृष्टिकोण से देखे क्योंकि वह एक स्त्री है!…
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मरने की फ़ुरसत | अनामिका ईसा मसीह औरत नहीं थे वरना मासिक धर्म ग्यारह बरस की उमर से उनको ठिठकाए ही रखता देवालय के बाहर! बेथलेहम और यरूशलम के बीच कठिन सफ़र में उनके हो जाते कई तो बलात्कार और उनके दुधमुँहे बच्चे चालीस दिन और चालीस रातें जब काटते सड़क पर, भूख से बिलबिलाकर मरते एक-एक कर— ईसा को फ़ुरसत नहीं मिलती सूली पर चढ़ जाने की भी!…
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कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते | सलमान अख़्तर कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते दीवार बहानों की गिरा क्यों नहीं देते तुम पास हो मेरे तो पता क्यों नहीं चलता तुम दूर हो मुझसे तो सदा क्यों नहीं देते बाहर की हवाओं का अगर ख़ौफ़ है इतना जो रौशनी अंदर है, बुझा क्यों नहीं देतेتوسط Nayi Dhara Radio
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अनुपस्थित-उपस्थित | राजेश जोशी मैं अक्सर अपनी चाबियाँ खो देता हूँ छाता मैं कहीं छोड़ आता हूँ और तर-ब-तर होकर घर लौटता हूँ अपना चश्मा तो मैं कई बार खो चुका हूँ पता नहीं किसके हाथ लगी होंगी वे चीजें किसी न किसी को कभी न कभी तो मिलती ही होंगी वे तमाम चीज़ें जिन्हें हम कहीं न कहीं भूल आए छूटी हुई हर एक चीज़ तो किसी के काम नहीं आती कभी भी लेकिन कोई न को…
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दादा की तस्वीर | मंगलेश डबराल दादा को तस्वीरें खिंचवाने का शौक़ नहीं था या उन्हें समय नहीं मिला उनकी सिर्फ़ एक तस्वीर गन्दी पुरानी दीवार पर टँगी है वे शान्त और गम्भीर बैठे हैं। पानी से भरे हुए बादल की तरह दादा के बारे में इतना ही मालूम है कि वे माँगनेवालों को भीख देते थे नींद में बेचैनी से करवट बदलते थे और सुबह उठकर बिस्तर की सिलवटें ठीक करते थे मै…
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एक वोट, एक मूल्य ये प्रजातंत्र का मूल सिद्धांत है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए, बदलती जनसंख्या के साथ लोकसभा की सीटों का बंटवारा भी बदलने की व्यवस्था हमारे संविधान में की गयी थी। हर दशकीय जनगणना के बाद जनसंख्या के अनुपात में सीटों का बंटवारा होना था। लेकिन, इमरजेंसी के दौरान इस व्यवस्था को पच्चीस सालों के लिए स्थगित कर दिया गया। २००१ में इस बंटवा…
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अँधेरे का सफ़र मेरे लिए है | रमानाथ अवस्थी तुम्हारी चाँंदनी का क्या करूँ मैं अँधेरे का सफ़र मेरे लिए है। किसी गुमनाम के दुख-सा अनजाना है सफ़र मेरा पहाड़ी शाम-सा तुमने मुझे वीरान में घेरा तुम्हारी सेज को ही क्यों सजाऊँ समूचा ही शहर मेरे लिए है थका बादल किसी सौदामिनी के साथ सोता है। मगर इनसान थकने पर बड़ा लाचार होता है। गगन की दामिनी का क्या करूँ मैं…
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नया सच रचने | नंदकिशोर आचार्य पत्तों का झर जाना शिशिर नहीं जड़ों में यह सपनों की कसमसाहट है- अपने लिए नया सच रचने की ख़ातिर- झूठ हो जाता है जो खुद झर जाता है।توسط Nayi Dhara Radio
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आत्मा | अंजू शर्मा मैं सिर्फ एक देह नहीं हूँ, देह के पिंजरे में कैद एक मुक्ति की कामना में लीन आत्मा हूँ, नृत्यरत हूँ निरंतर, बांधे हुए सलीके के घुँघरू, लौटा सकती हूँ मैं अब देवदूत को भी मेरे स्वर्ग की रचना मैं खुद करुँगी, मैं बेअसर हूँ किसी भी परिवर्तन से, उम्र के साथ कल पिंजरा तब्दील हो जायेगा झुर्रियों से भरे एक जर्जर खंडहर में, पर मैं उतार कर, …
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लड़की | अंजू शर्मा एक दिन समटते हुए अपने खालीपन को मैंने ढूँढा था उस लड़की को, जो भागती थी तितलियों के पीछे सँभालते हुए अपने दुपट्टे को फिर खो जाया करती थी किताबों के पीछे, गुनगुनाते हुए ग़ालिब की कोई ग़ज़ल अक्सर मिल जाती थी वो लाईब्रेरी में, कभी पाई जाती थी घर के बरामदे में बतियाते हुए प्रेमचंद और शेक्सपियर से, कभी बारिश में तलते पकौड़ों को छोड़कर…
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तुमने इस तालाब में | दुष्यंत कुमार तुमने इस तालाब में रोहू पकड़ने के लिए छोटी-छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फेंक दीं। तुम ही खा लेते सुबह को भूख लगती है बहुत, तुमने बासी रोटियाँ नाहक उठाकर फेंक दीं। जाने कैसी उँगलियाँ हैं जाने क्या अंदाज़ हैं, तुमने पत्तों को छुआ था जड़ हिलाकर फेंक दीं। इस अहाते के अँधेरे में धुआँ-सा भर गया, तुमने जलती लकड़ियाँ शायद बुझाक…
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जंतर-मंतर | अरुणाभ सौरभ लाल - दीवारों और झरोखे पर सरसराते दिन में सीढ़ी-सीढ़ी नाप रहे हो जंतर-मतर पर बोल कबूतर मैंना बोली फुदक-फुदककर बड़ी जालिम है। जंतर-मंतर मॉँगन से कछू मिले ना हियाँ बताओ किधर चले मियाँ पूछ उठाकर भगी गिलहरी कौवा बोला काँव - काँव लोट चलो अब अपने गाँव टिट्ही बोलीं टीं.टीं. राजा मंत्री छी...छी घर - घर माँग रहे वोट और नए- पुराने नोट…
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पढ़िए गीता | रघुवीर सहाय पढ़िए गीता बनिए सीता फिर इन सब में लगा पलीता किसी मूर्ख की हो परिणीता निज घर-बार बसाइए होंय कैँटीली आँखें गीली लकड़ी सीली, तबियत ढीली घर की सबसे बड़ी पतीली भर कर भात पसाइएتوسط Nayi Dhara Radio
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توسط Fanindra bhardwaj
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सुपर कीटाणुओं का कैसे करें मुकाबला? Understanding Superbugs and Antibiotic Resistance ft. Anirban Mahapatra
1:05:32
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एंटीबायोटिक की खोज मानव जाति के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था। इससे इंसानों का जीवनकाल बढ़ा और स्वास्थ्य सेवा में क्रांतिकारी बदलाव आया क्योंकि लोग अब मामूली चोटों और संक्रमणों के कारण नहीं मर रहे थे। लेकिन अब एक नया खतरा मंडरा रहा है - सुपरबग बैक्टीरिया अब तक खोजे गए एंटीबायोटिक्स के प्रति तेजी से प्रतिरोधी होते जा रहे हैं। एंटीबायोटिक प्रतिरोध को तेज…
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साथी | केदारनाथ अग्रवाल झूठ नहीं सच होगा साथी। गढ़ने को जो चाहे गढ़ ले मढ़ने को जो चाहे मढ़ ले शासन के सी रूप बदल ले राम बना रावण सा चल ले झूठ नहीं सच होगा साथी! करने को जो चाहे कर ले चलनी पर चढ़ सागर तर ले चिउँटी पर चढ़ चाँद पकड़ ले लड़ ले ऐटम बम से लड़ ले झूठ नहीं सच होगा साथी!توسط Nayi Dhara Radio
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मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था | अंजुम रहबर मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था मैं उस को देखने को तरसती ही रह गई जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था मरियम कहाँ तलाश करे अपने ख़ून को हर शख़्स के गले में निशान-ए-सलीब था दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी …
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पूछ रहे हो क्या अभाव है | शैलेन्द्र पूछ रहे हो क्या अभाव है तन है केवल, प्राण कहाँ है ? डूबा-डूबा सा अन्तर है यह बिखरी-सी भाव लहर है, अस्फुट मेरे स्वर हैं लेकिन मेरे जीवन के गान कहाँ हैं? मेरी अभिलाषाएँ अनगिन पूरी होंगी ? यही है कठिन, जो ख़ुद ही पूरी हो जाएँ - ऐसे ये अरमान कहाँ हैं ? लाख परायों से परिचित है, मेल-मोहब्बत का अभिनय है, जिनके बिन जग सू…
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just dropping full poetry episodes from my heart to your heart if hits you just send me love and do follow us ❤️توسط Fanindra bhardwaj
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राख | अरुण कमल शायद यह रुक जाता सही साइत पर बोला गया शब्द सही वक्त पर कन्धे पर रखा हाथ सही समय किसी मोड़ पर इंतज़ार शायद रुक जाती मौत ओफ! बार बार लगता है मैंने जैसे उसे ठीक से पकड़ा नहीं गिरा वह छूट कर मेरी गोद से किधर था मेरा ध्यान मैं कहाँ था अचानक आता है अँधेरा अचानक घास में फतिंगों की हलचल अचानक कोई फूल झड़ता है और पकने लगता है फल मैंने वे सारे …
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तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए | अंजुम रहबर तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद आ गए कल मेरी एक प्यारी सहेली किताब में इक ख़त छुपा रही थी कि तुम याद आ गए उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए ईमान जानिए कि इसे कुफ़्र जानिए मैं सर झुका रही थी कि तुम याद आ गए कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर…
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तुम्हारी जाति क्या है? | कुमार अंबुज तुम्हारी जाति क्या है कुमार अंबुज? तुम किस-किस के हाथ का खाना खा सकते हो और पी सकते हो किसके हाथ का पानी चुनाव में देते हो किस समुदाय को वोट ऑफ़िस में किस जाति से पुकारते हैं लोग तुम्हें जन्मपत्री में लिखा है कौन सा गोत्र और कहां ब्याही जाती हैं तुम्हारे घर की बहन-बेटियां बताओ अपना धर्म और वंशावली के बारे में किस…
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enjoy this podcaste by fanindra bhardwajتوسط Fanindra bhardwaj
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अँकुर | इब्बार रब्बी अँकुर जब सिर उठाता है ज़मीन की छत फोड़ गिराता है वह जब अन्धेरे में अंगड़ाता है मिट्टी का कलेजा फट जाता है हरी छतरियों की तन जाती है कतार छापामारों के दस्ते सज जाते हैं पाँत के पाँत नई हो या पुरानी वह हर ज़मीन काटता है हरा सिर हिलाता है नन्हा धड़ तानता है अँकुर आशा का रँग जमाता है।…
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Why is India’s Real Estate Market Broken? शहरों में घरों की कमी क्यों ft. Vaidehi Tandel
1:08:47
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Why is the housing market in India so expensive? Why is buying a house a decision fraught with risk and uncertainty? How can we find clues about the nexus between the builders and the politicians? This week, we speak to Vaidehi Tandel, an urban economist, who has researched into the issues that plague India’s housing market. भारत में घर इतने महंगे …
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बच्चा | रामदरश मिश्रा हम बच्चे से खेलते हैं। हम बच्चे की आँखों में झाँकते हैं। वह हमारी आँखों में झाँकता है हमारी आँखों में उसकी आँखों की मासूम परछाइयाँ गिरती हैं और उसकी आँखों में हमारी आँखों के काँटेदार जंगल। उसकी आँखें धीरे-धीरे काँटों का जंगल बनती चली जाती हैं और हम गर्व से कहते हैं- बच्चा बड़ा हो रहा है।…
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पिता | विनय कुमार सिंह ख़ामोशी से सो रहे पिता की फैली खुरदुरी हथेली को छूकर देखा उन हथेलियों की रेखाएं लगभग अदृश्य हो चली थीं फिर उन हथेलियों को देखते समय नज़र अपनी हथेली पर पड़ी और एहसास हुआ न जाने कब उन्होंने अपनी क़िस्मत की लकीरों को चुपचाप मेरी हथेली में रोप दिया था अपनी ओर से कुछ और जोड़करتوسط Nayi Dhara Radio
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मन के झील में | शशिप्रभा तिवारी आज फिर तुम्हारे मन के झील की परिक्रमा कर रही हूं धीरे-धीरे यादों की पगडंडी पर गुज़रते हुए वह पीपल का पुराना पेड़ याद आया उसके छांव में बैठ कर मुझसे बहुत सी बातें तुम करते थे मेरे कानों में बहुत कुछ कह जाते जो नज़रें मिला कर नहीं कह पाते थे क्या करूं गोविन्द! बहुत रोकती हूं मन कहा नहीं मानता तुम द्वारका वासी मैं बरसाने …
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लौटती सभ्यताएँ | अंजना टंडन विश्वास की गर्दन प्रायः लटकती है संदेह की कीलों पर, “कहीं कुछ तो है” का भाव दरअसल दिमाग की दबी आवाज़ है जो अक्सर छोड़ देती है प्रशंसा में भी कितनी खाली ध्वनियाँ, संदेह के कान आत्ममुग्धता की रूई से बंद है आँखें ऊगी हैं पूरी देह पर और खून में है दुनियावी अट्टाहास , कंठ भर तंज दिल के मर्म को कभी जान नहीं पाएगा, मृत्यु बाद ही…
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तुम औरत हो | पारुल चंद्रा क्योंकि किसी ने कहा है, कि बहुत बोलती हो, तो चुप हो जाना तुम उन सबके लिए... ख़ामोशियों से खेलना और अंधेरों में खो जाना, समेट लेना अपनी ख़्वाहिशें, और कैद हो जाना अपने ही जिस्म में… क्योंकि तुम तो तुम हो ही नहीं… क्योंकि तुम्हारा तो कोई वजूद नहीं... क्योंकि किसी के आने की उम्मीद पर आयी एक नाउम्मीदी हो तुम.. बोझ समझी जाती हो, …
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ईश्वर तुम्हारी मदद चाहता है | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी बदल सकता है धरती का रंग बदल सकता है चट्टानों का रूप बदल सकती है नदियों की दिशा बदल सकती है मौसम की गति ईश्वर तुम्हारी मदद चाहता है। अकेले नहीं उठा सकता वह इतना सारा बोझ।توسط Nayi Dhara Radio
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मेरी बेटी | इब्बार रब्बी मेरी बेटी बनती है मैडम बच्चों को डाँटती जो दीवार है फूटे बरसाती मेज़ कुर्सी पलंग पर नाक पर रख चश्मा सरकाती (जो वहाँ नहीं है) मोहन कुमार शैलेश सुप्रिया कनक को डाँटती ख़ामोश रहो चीख़ती डपटती कमरे में चक्कर लगाती है हाथ पीछे बांधे अकड़ कर फ़्रॉक के कोने को साड़ी की तरह सम्हालती कॉपियाँ जाँचती वेरी पुअर गुड कभी वर्क हार्ड के फू…
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IC814 Hijack Negotiations: असली कहानी, R&AW अफसर की ज़ुबानी ft. Anand Arni
1:04:15
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नमस्कार, जासूसी कथा और कमांडो मिशन के किस्सों में किसे दिलचस्पी नहीं होती। हालिया, आईसी-814 के हाईजैक पर सीरीज़ के चलते ये किस्सा फिर से चर्चा में है, तो हमने सोचा कि क्यों न किसी ऐसे मेहमान से बात की जाए जो खुद इस घटना में शामिल थें। आज की पुलियाबाज़ी पर हमारे मेहमान हैं आनंद आरणिजी जो IC-814 की घटना में उन पांच अफसरो में से थे जिन्हें भारत सरकार के…
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मुक्ति | केदारनाथ सिंह मुक्ति का जब कोई रास्ता नहीं मिला मैं लिखने बैठ गया हूँ मैं लिखना चाहता हूँ 'पेड़' यह जानते हुए कि लिखना पेड़ हो जाना है मैं लिखना चाहती हूँ ‘पानी’ 'आदमी' 'आदमी' मैं लिखना चाहता हूँ एक बच्चे का हाथ एक स्त्री का चेहरा मैं पूरी ताक़त के साथ शब्दों को फेंकना चाहता हूँ आदमी की तरफ़ यह जानते हुए कि आदमी का कुछ नहीं होगा में भरी सड़क …
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हम लौट जाएंगे | शशिप्रभा तिवारी कितने रात जागकर हमने तुमने मिलकर सपना बुना था कभी इस नीम की डाल पर बैठ कभी उस मंदिर कंगूरे पर बैठ कभी तालाब के किनारे बैठ कभी कुएं के जगत पर बैठ बहुत सी कहानियां मैं सुनाती थी तुम्हें ताकि उन कहानियों में से कुछ अलग कहानी तुम लिख सको और अपनी तकदीर बदल डालो कितने रात जागकर हमने तुमने मिलकर सपना बुना था साथ तुम्हारे हम…
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पहरा | अर्चना वर्मा जहां आज बर्फ़ है बहुत पहले वहां एक नदी थी एक चेहरा है निर्विकार जमी हुई नदी. आंख, बर्फ़ में सुराख़ द्वार के भीतर है तो एक संसार मगर कैद हलचलों पर मुस्तैद महज़ अंधेरा है सख़्त और ख़ूँख़ार और गहरा है. पहरा है उस पर जो बर्फं की नसों में बहा नदी ने जिसे जम कर सहाتوسط Nayi Dhara Radio
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बहुत पहले से | फ़िराक़ गोरखपुरी बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं मिरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जान ओ ईमाँ हैं निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए नादानी उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं तबीअ'त अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में हम ऐसे में तिरी यादों की चाद…
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